पुण्यतिथि विशेष: 'मैं आजाद हूं, आज मैं बहुत दुखी हूं'
मैं चंद्रशेखर आजाद हूं। 27 फरवरी को मैंने अपने देश की आजादी के लिए बलिदान दिया था। पुण्यतिथि पर आज मुझको याद किया जाएगा, मेरी प्रतिमा-चित्रों पर फूल चढ़ाए जाएंगे, इंकलाब के नारे लगाए जाएंगे, लेकिन मैं बिलकुल भी खुश नहीं हूं। देश के 'दिल' में जो कुछ हो रहा है, उसने मेरा दिल दुखाया है। मैंने तो ऐसे देश के लिए जान न्योछावर की थी, जहां सब लोग मिल-जुलकर रहेंगे, लेकिन यह सब क्या हो रहा है? लोग एक दूसरे की जान के दुश्मन बने हुए हैं। अगर आप वाकई में मुझे श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो पहले नफरत की दीवार गिराइए और भाईचारे के साथ रहिए।
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हर साल मुझको याद किया जाता है, लेकिन इस बार बात कुछ और है। दिल्ली में जो कुछ हो रहा है, वह मेरे लिए ही नहीं, उन सभी क्रांतिकारियों के लिए भी दिल दुखाने वाला है जिन्होंने अपना बलिदान दिया था। हमें क्या हो गया है? हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं? हमारा भविष्य कैसा होगा? जैसे सवाल मुझे कचोट रहे हैं। क्या हो गया है हम लोगों को? हम बर्बर कैसे होते जा रहे हैं? आजादी की लड़ाई हम सबने मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी थी, लेकिन अब क्या हो गया है? हमारी एकता क्यों तार-तार हो रही है? जरा-जरा सी बात पर लोग एक दूसरे की जान के दुश्मन क्यों बन जा रहे हैं? यह बिलकुल भी ठीक नहीं है। हमारा व्यवहार सभ्य नागरिक जैसा नहीं है। यह देश हमारा है। हमें अब इसे किसी से आजाद नहीं करवाना है। इस देश को हमें फिर से विश्वगुरु बनाना है लेकिन यह सब कैसे होगा? लोग जो कुछ दिल्ली में कर रहे हैं, उसने तो मेरे सपनों के भारत की धारणा को तार-तार कर दिया है। सिर्फ दिल्ली की बात क्यों करूं। तीन महीने से देश के कोने-कोने में मैंने भारत की आत्मा को जलते हुए देखा है। किस तरह से मेरे देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। मुट्ठीभर लोग पूरे देश के दिलों में नफरत भरने में कैसे कामयाब हो गए? यह सवाल मुझे चुभ रहा है।
अब भी वक्त है, जाग जाइए। कहीं ऐसा न हो कि मेरे जैसे क्रांतिकारियों का बलिदान व्यर्थ हो जाए। हम आपस में लड़ते रहें और किसी दिन विदेशी ताकत हमारी जमीन पर कब्जा जमा लें। आप आज मेरी पुण्यतिथि पर संकल्प लीजिए कि अब आपस में भाईचारे के साथ रहेंगे। कौन सही है और कौन गलत है, इसकी समझ विकसित करेंगे। अगर कुछ गलत हो रहा है तो उसके खिलाफ आवाज उठाइए, लेकिन अपने ही देश की संपत्ति को नुकसान न पहुंचाइए, अपने ही भाइयों का खून मत बहाइए। बस आप इतना भी कर सकें तो यही मेरी लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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आजाद के बारे में खास बातें
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था। चंद्रशेखर आजाद को निडरता, देश भक्ति अपने पिता पंडित सीताराम तिवारी से विरासत में मिली थी। जब वे 14 वर्ष के थे और वाराणसी में पढ़ाई कर रहे थे तो उन्होंने कानून भंग आंदोलन में हिस्सा लिया था। उनको गिरफ्तार किया गया था। अदालत में जब उनसे नाम पूछा गया तो उन्होंने कहा था 'आजाद'। पिता का नाम उन्होंने 'स्वतंत्रता' और पता 'जेल' बताया था। 14 साल के बालक के साहस से अंग्रेज जज घबरा गया। उसने 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई लेकिन आजाद तो आजाद थे। उन्होंने हर कोड़े के साथ वंदेमातरम का नारा बुलंद किया।
बाद में आजाद हिंदुस्तान सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े और क्रांतिकारी के रूप में उभरे। उन्होंने रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में काकोरी कांड को 1925 में अंजाम दिया था। इस घटना ने अंग्रेज सरकार की चूलें हिला दी थीं। वे कभी पुलिस के हाथ नहीं आए। उन्होंने कहा था मैं आजाद हूं और आजाद ही मरूंगा। 17 दिसंबर 1928 को उन्होंने लाहौर में जेपी सांडर्स को भगत सिंह व राजगुरु के साथ मिलकर मार डाला था। सांडर्स पर पहली गोली राजगुरु ने चलाई थी और बाद में भगत सिंह ने। इसके बाद जब सांडर्स का बॉडीगार्ड पीछा करने लगा तो उसे चंद्रशेखर आजाद ने गोली मार दी। इसके घटना के बाद पूरे लाहौर में पोस्टर चस्पा कर दिए गए कि लाला लाजपत राय की हत्या का बदला ले लिया गया है।
27 फरवरी 1931 को चंद्रशेखर आजाद को इलाहाबाद (प्रयागराज) के कंपनी बाग में अंग्रेज सिपाहियों ने घेर लिया था। आजाद उस वक्त अकेले थे। वे आखिरी गोली तक अंग्रेजों से लड़ते रहे। जब एक गोली बची तो उन्होंने खुद को गोली मारकर अपना बलिदान दे दिया। उन्होंने जो कहा था, वह कर दिखाया। आजाद ने कहा था मैं 'आजाद' हूं और कभी अंग्रेजों के हाथ में नहीं आऊंगा। वे आजाद ही रहे। आजादी के बाद कंपनी बाग का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क कर दिया गया। आज भी उनके शहादत स्थल को देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। उनकी जयंती व पुण्यतिथि पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
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