गरीबी, कुपोषण और सस्ती शिक्षा, जेएनयू के छात्रों का विरोध प्रदर्शन कितना सही?
देश भर में इस समय जेएनयू का मुद्दा छाया है। कुछ वक्त पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रों की फीस में बढ़ोतरी कर दी गई, जिसे लेकर हजारों छात्र छात्रावास शुल्क वृद्धि को पूरी तरह वापस लिए जाने की मांग को विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। छात्रों के प्रदर्शन और छात्रावास शुल्क वृद्धि का मामला संसद में भी गर्माया हुआ है। हर तरफ इसकी चर्चा हो रही है। ये फीस वृद्धि सही है या गलत इस बारे में बात की जाएगी, लेकिन पहले ये जानना जरूरी है कि पहले जेएनयू की फीस कितनी थी और अब कितनी कर दी गई।
पहले जेएनयू हॉस्टल के सिंगल सीटर रूम का किराया मात्र 20 रुपए था। जिसे मैनेजमेंट ने बढ़ाकर 600 रुपए कर दिया था। लेकिन, विरोध के बाद अब इसे 300 कर दिया गया है, जो पहले की फीस से 15 गुना ज़्यादा है। इसी तरह जेएनयू हॉस्टल के डबल सिटर रूम का किराया पहले मात्र 10 रुपए था, जिसे मैनजमेंट ने बढ़ाकर 300 रुपए कर दिया था। लेकिन, विरोध के बाद इसमें 150 रुपए की कटौती कर दी गई। इसी तरह वन टाइम मेस सिक्योरिटी पहले 500 रुपए वसूली जाती थी, जिसे बढ़ाकर 12 हजार कर दिया गया था। लेकिन, छात्रों ने विरोध किया तो इसे फिर 500 कर दिया गया। वहीं, पहले हॉस्टल में रहने वालों को बिजली और पानी के कोई पैसे नहीं देने पड़ते थे, लेकिन, नए फीस मैन्युअल में पैसे देने का प्रावधान है। पहले छात्रों से सर्विस चार्ज के तौर पर कोई रकम नहीं ली जाती थी, जिसे बढ़ाकर 1700 रुपए या इस्तेमाल के मुताबिक किया गया। लेकिन, अब बिल का 50 फीसदी सर्विस चार्ज छात्रों को देना होगा। इसी तरह पहले जेएनयू हॉस्टल में रहने वाले छात्रों से यूटिलिटी चार्ज के तौर पर पैसे नहीं लिए जाते थे। लेकिन, अब बिल की 50 परसेंट फीस भरनी होगी।
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हालांकि, जेएनयू के छात्र बढ़ी हुई फीस में आशिंक कटौती पर राजी होने को तैयार नहीं हैं। उनकी मांग है कि जो फीस पहले थी वही फीस दोबारा कर दी जाए। छात्रों की मांग सस्ती शिक्षा है। इसी बात को लेकर छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने इन छात्रों पर लाठी चार्ज भी किया, जिसकी तस्वीरें खबरों और सोशल मीडिया हर जगह दिख रही हैं। जेएनयू के छात्रों के विरोध प्रदर्शन को लेकर लोग एक बार फिर दो धड़ों में बंट गए हैं। कुछ ऐसे हैं, जो इस बढ़ी हुई फीस को जायज ठहरा रहे हैं और कुछ ऐसे हैं जो इसके विरोध हैं। दोनों ही धड़ों के अपने-अपने तर्क हैं। जो फीस बढ़ने के समर्थन में हैं उनके कई सवाल हैं, मसलन - अगर पढ़ना है तो क्या महीने में थोड़ी सी बढ़ी हुई फीस नहीं दे सकते? जेएनयू में लोग बुढ़ापे तक पढ़ते ही क्यों हैं? जेएनयू के छात्र नशे और दूसरी कई बुराइयों में लिप्त हैं, यूनिवर्सिटी बंद कर देनी चाहिए। ये छात्र फीस के नाम पर अपने हित साधने की कोशिश कर रहे हैं। जेएनयू के छात्रों को दिक्कत फीस से नहीं है बल्कि उन नियमों से है जिनमें लड़कियों और लड़कों का एक-दूसरे के कमरे में जाना बंद कर दिया गया है, लड़कियों का ड्रेस कोड निर्धारित किया गया है और आने-जाने का समय तय हो गया है। जेएनयू के ज्यादातर छात्रों की विचारधारा वामपंथी है, वे देशद्रोही हैं... और भी न जाने ऐसे क्या-क्या तर्क हैं, जो फीस बढ़ने को सही और जेएनयू स्टूडेंट्स प्रोटेस्ट को गलत ठहराने के लिए लोग दे रहे हैं।
वहीं, कई लोग ऐसे भी हैं जो इस बात के समर्थन में हैं कि बढ़ी हुई फीस को वापस लेना चाहिए, साथ ही वे सभी के लिए सस्ती शिक्षा का मुद्दा भी उठा रहे हैं। मैं ये तय करने वाली कोई नहीं हूं कि इनमें से कौन सही है और कौन गलत है। जेएनयू के छात्रों के विरोध प्रदर्शन का समर्थन करना चाहिए या नहीं करना चाहिए, लेकिन एक बात है जिसका मैं समर्थन करती हूं और वो है सस्ती शिक्षा। ये किसी भी देश के लिए दुर्भाग्य की बात है कि वहां के छात्रों को लोन लेकर पढ़ाई करने पड़े, लेकिन हमारे देश में इस बात का महिमामंडन किया जाता है।
कुछ लोगों का ये तर्क है कि भारत में इतनी भी गरीबी नहीं है कि जेएनयू की बढ़ी हुई फीस न दी जा सके। हो सकता है कि वो सही हों, वाकई इतनी गरीबी न हो, लेकिन देश में कुपोषण और हंगर इंडेक्स के आंकड़े कुछ और कहते हैं। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 का कहना है कि दुनिया में कुल 15 करोड़ 80 लाख अविकसित बच्चों में से 31 फीसदी बच्चे भारत में है, जबकि दुनिया भर के कुपोषित बच्चों का आधा हिस्सा भारत में रहता हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे देश में 4 करोड़ 60 लाख 60 हजार बच्चे (उम्र के हिसाब से कम ऊंचाई) हैं जो लंबे समय तक खराब पोषण के भोजन और बार-बार संक्रमण की वजह से पीड़ित रहते हैं । संयुक्त राष्ट्र के भोजन व कृषि संगठन की रिपोर्ट ‘दुनिया में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति - 2019’ के अनुसार, दुनियाभर में सबसे ज्यादा 14.5 प्रतिशत यानी 19.44 करोड़ कुपोषित भारत में हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें दोनों वक्त का भोजन नसीब नहीं है, इनमें से ज्यादातर को भूखे ही सो जाना पड़ता है। वैश्विक भूख सूचकांक 2019 में भारत कुल 117 देशों में 102वें स्थान पर रहा। यह सूचकांक बताता है कि देश में कुपोषण, बाल कुपोषण, बाल मृत्युदर और बच्चों में बौनापन की स्थिति गंभीर है। अंतरराष्ट्रीय रूप से सुप्रसिद्ध ब्रूकिंग्स संस्थान की एक रिपोर्ट यह बताती है कि गरीबी के मई 2018 के आकड़े लिए जाएं, तो भारत में घोर दरिद्रता की स्थिति में रहने वालों की संख्या 7.30 करोड़ है।
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अब बात अगर जेएनयू में गरीब बच्चों की हो तो, आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जेएनयू में पढ़ने वाले 40 फीसदी बच्चों के परिवार की मासिक आय 12000 रुपये से कम है और बाकी 60 फीसदी बच्चों के परिवार की मासिक आय 12000 से ज्यादा है, ये 12001 रुपये से लेकर कितनी भी हो सकती है। यूनिवर्सिटी में कुल 8000 बच्चे पढ़ते हैं जिनमें से लगभग 3200 बच्चे 12000 रुपये मासिक आय वाली श्रेणी में आते हैं। अगर ये फीस बढ़ जाती है तो इन 3200 बच्चों का अपनी पढ़ाई जारी रखना मुश्किल हो जाएगा।
अब अगर इस बात पर चर्चा की जाए कि जेएनयू की फीस ही देश में सबसे कम है तो ये भी गलत है। जबकि सच यह है कि देश के टॉप 10 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की फीस अगर बढ़ती है तो यह सबसे ज्यादा होगी। यह बात एक विश्लेषण में सामने आई है। इसमें देश के 10 केंद्रीय विश्वविद्यालयों को शामिल किया गया है। लोगों का ऐसा मानना है कि जेएनयू की पुरानी हॉस्टल फीस देश के तमाम केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सबसे कम थी, लेकिन ये पूरी तरह से गलत है। विश्व-भारती विश्वविद्यालय, एचसीयू, एएमयू, एनईएचयू और पांडिचेरी विश्वविद्यालय के हॉस्टल की फीस जेएनयू जितनी नहीं उससे कम है।
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ये रैंकिंग नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) ने की है। इसमें जेएनयू, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (एचसीयू), अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू), जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली विश्वविद्यालय, तेजपुर विश्वविद्यालय, विश्व-भारती विश्वविद्यालय, नॉर्थईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (एनईएचयू), पांडिचेरी विश्वविद्यालय शामिल हैं।
जेएनयू के बहाने देश में सस्ती शिक्षा का मुद्दा उठा है, जो बेहद जरूरी है। देश के हर नागरिक का अधिकार है कि वह बेहतर से बेहतर शिक्षण संस्थान में सस्ती शिक्षा हासिक कर सके। गरीब बच्चे भी अंग्रेजी मीडियम महंगे स्कूलों में पढ़ सकें, शिक्षा का अधिकार (आरटीई) भी इसीलिए लाया गया था। जरूरत ये भी है कि सभी प्राइमरी स्कूलों के पाठ्यक्रम को आज के समय के हिसाब से बदला जाए और हर बच्चे को सस्ती व अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले।
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