विदेश की नौकरी छोड़ कैंसर मरीजों के लिए वैशाली कर रहीं प्राकृतिक खेती
फसलों में प्रयोग होने वाले रासायनिक पदार्थों से हमारे शरीर पर बहुत खराब असर पड़ रहा है। शरीर पर होने वाले दुष्प्रभाव जानने के बाद भी लोग इनके उपयोग से पैदा किए खाद्यान का बिना सोचे-समझे उपयोग कर रहे हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के इंदौर शहर की वैशाली मालवीय ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने लोगों को फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइड के उपयोग से होने वाले खाद्य पदार्थो के नुकसान के प्रति जागरूक करने की जंग छेड़ रखी है।
वे विदेश में अपनी लाखों के पैकेज की नौकरी छोड़ भारत आकर स्वयं प्राकृतिक खेती करने में जुटी हैं। प्राकृतिक खेती से जो भी अनाज पैदा होता है, उसे मार्केट में बेचने से पहले वैशाली कैंसर से पीड़ित मरीजों को बिना किसी प्रॉफिट मार्जिन के उपलब्ध कराती हैं।
वैशाली कहती हैं बहुत कम लोग जानते हैं कि कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी की एक बड़ी वजह कीटनाशकों के उपयोग से पैदा अनाज का सेवन करना है। इसी के चलते कैंसर मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। मेरी मां की मौत भी कैंसर की वजह से ही हुई थी।
कैंसर से हुई थी मां की मौत
वैशाली अपने पति चंद्रप्रकाश के साथ इथोपिया में अच्छी जॉब कर रही थी, लेकिन 2015 में कैंसर के कारण मां की मौत ने उन्हें झकझोर दिया। सामान्य चर्चा में डॉक्टरों ने उन्हें बताया था कि खेतों में रासायनिक खाद के अत्यधिक उपयोग के कारण कैंसर जैसी घातक बीमारियां बढ़ रही है। इस चर्चा ने वैशाली को चिंतन में डाल दिया।
पैतृक जमीन पर शुरू की प्राकृतिक खेती
2015 मैं वैशाली और उनके पति ने इथोपिया से भारत वापस आकर खालवा में उनकी पैतृक जमीन पर प्राकृतिक खेती करना शुरू की। सोयाबीन और मक्के की खेती से शुरू कर आज यह दंपति लगभग हर तरह के अनाज की खेती कर रहा है, जिसमें मूंग, उडद, चना, गेहूं और मटर प्रमुख हैं।
गुड़ और दालों से बनाती हैं खाद
वैशाली बताती हैं कि लोग ऑर्गेनिक खेती को भी प्राकृतिक मान लेते हैं, लेकिन ऑर्गेनिक खेती में लगभग 23 प्रकार के केमिकल्स के उपयोग की मंजूरी होती है, जबकि प्राकृतिक खेती में एक भी केमिकल का उपयोग नहीं किया जाता।इसके लिए खाद को विशेष रूप से तैयार किया जाता है, जिसमें गुड़, सड़ी हुई दाल, मिट्टी, गोबर को मिलाया जाता है। 21 दिन में एक बार इस तरह की खाद को सिंचाई के पानी के साथ पूरे खेत में बहा दिया जाता है।
आदिवासी महिलाओं को सिखा रहीं खेती
वैशाली बताती हैं कि उनके खेत में काम करने वालों में 90 फीसदी आदिवासी महिलाएं ही हैं। बुवाई, कटाई जैसे सभी महत्वपूर्ण कामों का जिम्मा महिलाओं के पास ही होता है। सिर्फ सिंचाई का काम पुरुषों के जिम्मे है। वैशाली कहती हैं आदिवासी महिलाओं के पास स्वयं की जमीन होने के बाद भी उन्हें उनकी उपज का वाजिब दाम नहीं मिल पाता। मैं इन महिलाओं को खेती और मार्केटिंग के तरीके सिखाती हूं जिससे ये अपनी आय को बढ़ा सकें।
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