लाल कृष्ण आडवाणी: आज 92 का हुआ 92 का 'हीरो'
राममंदिर और अयोध्या आंदोलन का सूत्रपात कर भारतवर्ष की राजनीति को नई धारा देने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी आज 92 साल के हो गए। बीजेपी के पितामह कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी 1992 के अयोध्या आंदोलन के नायक रहे। आज 92 साल पूरे होने पर पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को बधाई देने के लिए उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा उनके घर पहुंचे। लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को मौजूदा पाकिस्तान के कराची में हुआ था, बंटवारे के समय लालकृष्ण आडवाणी परिवार सहित भारत आ गए थे।
रथयात्रा की वजह से बने असली हीरो
आज अयोध्या का मुद्दा पूरे देश में छाया हुआ है, लेकिन इस मंदिर के मुद्दे को आग लाने वाले लालकृष्ण आडवाणी थे। जिन्होंने राममंदिर के निर्माण को लेकर जंग छेड़ दी थी। अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण की मांग को लेकर उन्होंने 1990 में गुजरात के सोमनाथ से शुरू की थी। उनकी इस रथ यात्रा ने भारत के सामाजिक ताने-बाने पर अंदर तक असर डाला और बीजेपी को राष्ट्रीय पार्टी बनाएं रखने में अहम भूमिका निभाई। बड़ी विडंबना यह है कि 92 के असली हीरो रहे आडवाणी आज अपना 92वां जन्मदिन मना रहे हैं, तो उसी अयोध्या आंदोलन पर हिन्दुस्तान की सर्वोच्च अदालत का फैसला आने वाला है।
पाकिस्तान के 'लाल' ने भारत में किया कमाल
पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी का जन्म अविभाजित भारत के सिंध प्रांत (वर्तमान में कराची) में 8 नवंबर 1927 को हुआ था। उनके पिता का नाम था कृष्णचंद डी आडवाणी और उनकी माता का नाम ज्ञानी देवी। उन्होंने पाकिस्तान के कराची में स्कूल में पढ़े और सिंध में कॉलेज में दाखिला लिया। जब देश का विभाजन हुआ तो उनका परिवार मुंबई आ गया। यहां पर उन्होंने कानून की शिक्षा ली और 14 साल की उम्र में वह संघ से जुड़ गए।
राजनीति से 1951 शुरू किया सफर
लालकृष्ण आडवाणी भारत में 1951 में वे श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित जनसंघ से जुड़े और यही से उन्होंने राजनीति शुरू कर दी। 1977 में जनता पार्टी से जुड़े फिर और फिर 1980 में बीजेपी पार्टी में। बीजेपी के साथ आडवाणी ने भारतीय राजनीति की धारा ही बदल दी। आडवाणी ने आधुनिक भारत में हिन्दुत्व की राजनीति से प्रयोग किया। हिन्दुत्व का प्रयोग सफल रहा और 1984 में 2 सीटों के सफर से शुरुआत करने वाली बीजेपी 2019 में 303 सीटों पाई। यही नहीं 2014 के चुनाव में भी शानदार प्रदर्शन पार्टी का रहा।
रथयात्रा के रहे रणनीतिकार
हिन्दुत्व पर काम करने वाले विश्व हिन्दू परिषद ने 1980 में ही राम जन्मभूमि आंदोलन शुरू कर दिया। विहिप ने आंदोलन शुरु कर दिया, लेकिन उसे इस आंदोलन को कोई बड़ा राजनीति संरक्षण हासिल नहीं हुआ। राममंदिर के मुद्दे समय रहते भांपते हुए आडवाणी इसके समर्थन में आ गए। 1984 में इंदिरा गांधी की हुई हत्या के लहर में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 2 सीटें जीतीं थी।
1989 में आंदोलन को किया समर्थन
1989 में हुए लोकसभा चुनाव में हुए इस आंदोलन को औपचारिक रुप से समर्थन देना शुरू कर दिया था। बीजेपी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का वादा अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया। मंदिर के निर्माण को लेकर आडवाणी खुलकर इसके समर्थन में आए। यही नहीं, इसका फायदा बीजेपी को लोकसभा चुनाव में हुआ और पार्टी की सीटें 1984 में जहां 2 थी वह बढ़कर 86 हो गई।
सोमनाथ से निकाली यात्रा
1989 में पार्टी को मिली सफलता के बाद आडवाणी पूरी ताकत के साथ इस आंदोलन से जुड़ गए। उन्होंने एक रणनीति के तहत उन्होंने रथयात्रा की घोषणा की। इसके लिए उन्होंने प्रस्थान बिंदू चुना गुजरात का सोमनाथ मंदिर और रथ यात्रा का समापन होना था अयोध्या में। इन दोनों ही स्थानों के बारे में भारतीय जनमानस में एक धारणा थी और उसका फायदा मिला भी। ये दोनों ही स्थान इस्लामी शासकों के हमले का शिकार हो चुके थे।
अपने भाषणों से बटोरी सुर्खियां
लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को राममंदिर निर्माण के लिए समर्थन जुटाने की खातिर सोमनाथ से रथयात्रा शुरू कर दी। मंदिर निर्माण को लेकर उनकी शुरू हुई रथ यात्रा ने काफी सुर्खियां बटोरी। यही नहीं आडवाणी अपने जोशीले और तेजस्वी भाषणों की वजह से हिन्दुत्व के नायक बन गए। हिन्दी पट्टी राज्यों में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ बहुत बढ़ा और यहां पर पार्टी को लोकप्रियता मिली। हालांकि इस रथ यात्रा के दौरान भारत में हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के बीच साम्प्रदायिक वैमनस्य का भाव पनपे लगा।
जब लालू यादव ने करा दिया गिरफ्तार
लालकृष्ण आडवाणी ने जिस उद्देश्य के साथ यात्रा पर निकले थे वह पूरी तरह सफल नहीं हो पाया था। उनका इरादा राज्य-दर-राज्य होते हुए 30 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के अयोध्या पहुंचने का था, जहां वह मंदिर निर्माण शुरू करने के लिए होने वाली 'कारसेवा' में शामिल होने वाले थे। इसी बीच में लालकृष्ण आडवाणी के बरक्श ही बिहार में एक अपोजिट धुरी की राजनीति जन्म ले चुकी थी। उनकी यात्रा को रोकने वाले नायक थे लालू यादव। उन्होंने बिहार में लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोकने की ठान ली थी और इसके लिए पूरा प्लान बना लिया था। आडवाणी की रथ यात्रा जब बिहार के समस्तीपुर पहुंची तो 23 अक्टूबर को उन्हें तत्कालीन सीएम लालू यादव के आदेश पर गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद केंद्र की सरकार में भूचाल आ गया और वीपी सिंह की सरकार गिर गई।
1992 में गिराई गई बाबरी
लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा समाप्त हो गई लेकिन 1991 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को फिर फायदा हुआ। इस चुनाव में बीजेपी की सीटें 120 तक पहुंच गई। 1992 तक यह आंदोलन अयोध्या में पूरी तरह से परवान चढ़ गया। राज्य में तब कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी। यूपी के सीएम कल्याण सिंह ने अदालत में मस्जिद की हिफाजत करने का हलफनामा दिया था। 30-31 अक्टूबर को धर्म संसद आयोजित किया गया था। 6 दिसंबर 1992 को हजारों की संख्या में कारसेवक अयोध्या में जमा थे। कारसेवकों के साथ में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती जैसे नेता मौजूद थे। कारसेवकों की भीड़ देखते ही देखते बेकाबू हो गई। इस भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। बाबरी मस्जिद के केस को लेकर मुकदमा लालकृष्ण आडवाणी पर आज भी चल रहा है।
बीजेपी में पचास साल तक नंबर दो रहे
राममंदिर आंदोलन के लोकप्रिय नेता होने की वजह से लालकृष्ण आडवाणी 50 सालों के लंबी संसदीय राजनीति में बीजेपी में नंबर दो बने रहे। 1995 में लालकृष्ण आडवाणी ने अटल बिहारी वाजपेयी को पीएम पद का दावेदार बताकर सबको हैरानी में डाल दिया था। 1996 में आडवाणी पर हवाला कांड में शामिल होने का आरोप लगा, विपक्ष उनपर उंगली उठाता इससे पहले ही उन्होंने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। वह इस मामले में बाद में बेदाग बरी हुए।
अपने साथियों को खो चुके हैं आडवाणी
भारतीय राजनीति में 60 साल से अधिक समय तक सक्रिय रहने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने अपने आगे अपने दोस्तों को भी खो दिया है। शतायु की ओर प्रस्थान कर रहे बीजेपी के लौह पुरुष आडवाणी अपने समकक्षों को खो चुके हैं। अटल बिहारी वाजपेयी, भैरों सिंह शेखावत, कैलाशपति मिश्र, मदन लाल खुराना, सुंदर लाल पटवा जैसे दोस्तों को उन्होंने अपने सामने विदा किया। भारतीय राजनीति में जैसे करके उताव चढ़ाव आया, उसके वह गवाह रहे हैं। आजादी के बाद से बदलते देश और सियासत के वे चंद चेहरों में शामिल रहे हैं लालकृष्ण आडवाणी के अनुभव का कोई सानी नहीं।
आडवाणी लगातार 8 बार लोकसभा सदस्य रहे
लालकृष्ण आडवाणी ने 1989 में अपना पहला लोकसभा चुनाव नई दिल्ली से जीता था। इसके बाद वह 2014 तक लगातार आठ बार लोकसभा सदस्य रहे। उन्होंने गांधीनगर से छह बार चुनाव जीता। यही नहीं वह 1970 से 1989 तक आडवाणी राज्यसभा सदस्य रहे। भाजपा ने 2019 के आम चुनाव में गांधीनगर से आडवाणी की जगह अमित शाह को टिकट दिया। शाह ने इस सीट पर 5 लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की है।
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