ताकि भविष्य में और बन सके एपीजे अब्दुल कलाम
इसका कारण यह है कि इन बच्चों को कदंबुर में स्थित उनके स्कूल तक ले जाने वाली इकलौती बस सुबह 5ः30 बजे गुंदरी पहुंचती है। स्कूल से यहां की दूरी 19 किलोमीटर है। अगर बच्चों की बस छूट गई, तो उन्हें सत्यमंगलम टाइगर रिजर्व के बीहड़ रास्ते से स्कूल पहुंचना पड़ता है। यानि फिर उस दिन स्कूल में उपस्थिति नहीं हो पाती है। ऐसी स्थिति में बच्चे में बस के इंतजार में सुबह 4 बजे ही तैयारी शुरू कर देते है और 5 बजे बस के इंतजार में खडे़ हो जाते हैं। वास्तव में यह लिखने से पहले हमें भी यकीन नहीं हुआ था कि 21वीं सदी में जहां आज हाईटेक युग में जगह-जगह पर स्कूल खुल गए हंै, तो आखिर इन गांवों में क्यों नहीं खुले, लेकिन देश की रफ्तार में आगे बढ़ रहे तमिलनाडु के कुछ इलाकों की यह भी हकीकत है। लेकिन सलाम है उनके हौसलों को जो कि पढ़ाई कर रहे हैं और उन्हीं संघर्ष की वजह से आज तमिलनाडु साक्षरता दर में 74.4 प्रतिशत के साथ देश में 11वें स्थान पर है।
आखिर सरकार क्यों नहीं दे पाई दूसरी बस व खुलवा पाई स्कूल
शिक्षा के क्षेत्र में अग्रसर व भारत सहित पूरी दुनिया को इंजीनियर व वैज्ञानिक के क्षेत्र में नायाब हीरें देने वाले तलिमनाडु की यह कहानी जरूर कुछ अलग तस्वीर पेश कर करती है। इस मुद्दे पर तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री के, सेंगोट्टयन का कहना है कि ’स्कूल के छात्रों के लिए ट्रांसपोर्ट विभाग के अफसरों को मिनी वैन का इंतजाम करने का आदेश दिया जाएगा। जब मैं इरोड़ जिले का दौरा करूंगा तो ट्रांसपोर्ट अफसरों की एक मीटिंग आयोजित की जाएगी।’ गुंदरी और इसके आस-पास के इलाके के 26 गांवों में करीब 5000 लोग रहते हैं। उनके जीवन-यापन का इकलौता स्त्रोत खेती है। रोमन कैथलिक मिशनरी के लोगों ने यहां 1910 में प्राइमरी स्कूल की नींव रखी थी। 1975 में स्कूल को सरकारी मदद मिलने के बाद यह अपर प्राइमरी स्कूल में अपग्रेड हो गया। छात्रों की तादाद बढ़ने के बाद यहां सेल्फ फाइनेंस कैटिगरी का हाई स्कूल (10वीं तक) शुरू किया गया। निजी स्कूल खुला है लेकिन यहां पर फीस नहीं जमा कर पा रहे हैं।
निजी स्कूल में नहीं जमा कर पा रहे फीस
छात्रों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यहां पर भी शिक्षा कमाई का जरिया बन गई। यहां पर छात्रों की बढ़ती संख्या को देख निजी स्कूल खुल तो गया लेकिन यहां पर फीस इतनी रख दी गई कि बच्चे जमा ही नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि यहां के अधिकतर परिवारों की कमाई का जरिया सिर्फ खेती पर नही निर्भर है। ऐसे में मजबूरन बच्चों को गांव से सुदूर 19 किलोमीटर पर स्थित कदंबुर आना पड़ता है। इन गांवों के 18 लड़कियों समेत कुल 32 स्टूडेंट्स गुंदरी इलाके के 26 गांवों से कदंबुर गवर्नमेंट हायर सेकंडरी स्कूल में पढ़ने आते हैं। इनमें 11वीं और 12वीं के ऐसे स्टूडेंट भी हैं। सात छात्राओं समेत 18 स्टूडेंट्स ने उच्च शिक्षा के लिए सत्यमंगलम के गवर्नमेंट आर्ट्स ऐंड साइंस कॉलेज का रुख किया है। यह कॉलेज गुंदरी से 54 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
अगले सत्र में अपग्रेड होगा गुंदरी का हाईस्कूल
ऐसा नहीं है कि सरकार ने अभी तक गुंदरी इलाके में स्कूल नहीं खुलवाया है। गुंदरी में भी स्कूल खुला है, लेकिन अभी तक वहां पर सिर्फ हाईस्कूल तक ही कक्षाएं चलती है। ऐसे में हायर सेकेंडरी के बच्चों को कंदबुर स्थित स्कूल का रूख करना पड़ता है। शिक्षा मंत्री सेंगोट्टयन से एक निजी चैनल द्वारा पूछे सवाल में उन्होंने कहा कि अगले सत्र से गुंदरी के हाई स्कूल को हायर सेकंडरी स्कूल में अपग्रेड करने के लिए कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि मैं शिक्षा विभाग के अधिकारियों को स्कूल के अपग्रेड होने की संभावनाओं का निरीक्षण करने के लिए निर्देश दूंगा।
बस छूटने पर नहीं जा पाते बच्चे स्कूल
गुंदरी के अलावा अन्य गांवों से भी बच्चे जाते हैं, उन बच्चों को गुंदरी आना पड़ता है। गुंदरी से 3 किमी दूर महालीथोट्टी में रहने वाली 12वीं की छात्रा के अकल्या का कहना है कि मुझे बस पकड़ने के लिए रोज सुबह 4ः30 पर उठना पड़ता है। अगर बस छूटती है तो मजबूरन मुझे स्कूल जाने का विचार त्यागना पड़ता है। यह सिर्फ अकल्या की नहीं बल्कि ऐसे ही कहानी वहां पर पढ़ने वाले दर्जनों के सामने है, जो कि बस छूट जाने पर उस दिन स्कूल नहीं जा पाते हैं।
परीक्षा के समय बहुत ही होती है मुश्किल
हम और आप परीक्षा के समय पूरी तरह से पढ़ाई में लगे रहते हैं, परीक्षा देने के तंुरत बाद घर आकर अगले पेपर की तैयारी में लग जाते हैं। लेकिन यहां के बच्चों की कैसे परीक्षा की तैयारी होती होगी इसका अंदाजा सिर्फ उनके स्कूल जाने व आने के समय से लगाया जा जा सकता है। सत्यमंगलम के गवर्नमेंट आर्ट्स ऐंड साइंस कॉलेज में बी कॉम सेकंड इयर की छात्रा एम प्रिया बताती है कि पिता की नौकरी की वजह से वह कोयंबटूर से पढ़ाई कर रही थीं। लेकिन गुंदरी के पास कोविलूर में शिफ्ट होने पर उन्हें रोजाना कॉलेज जाकर लौटना पड़ता है। उनका कहना है, मुझे घर जाने के लिए तीन घंटे तक बस का इंतजार करना पड़ता है, क्योंकि मेरी क्लास शाम को चार बजे खत्म होती है। परीक्षाओं के दौरान भी स्कूल के बच्चों को मुसीबत झेलनी पड़ती है। 11वीं की छात्रा एस परमिला का कहना है, ‘हमारे एक्जाम दोपहर में एक बजे खत्म हो जाते हैं लेकिन हमें कदंबुर से बस पकड़ने के लिए रात में 8ः30 बजे तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।’
अभिभावकों के लिए भी कम नहीं है मुसीबत
अपने बच्चे का भविष्य संवारने के लिए उन्हें भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है। रात के दस बच्चा आता है और सुबह के 5 फिर घर से निकल जाता है, तो इस दौरान अभिभावकों को किन-किन परेशानियों से होकर गुजरना पड़ता है इससे हम और आप भी जान सकते हैं। यहां की मांओं को तड़के तीन बजे ही बच्चों के लिए ब्रेकफस्ट और लंच तैयार करने के लिए उठना पड़ता है। ऐसी ही एक मां सी लक्ष्मी का कहना है, ‘बेटी को डिनर सर्व करने के बाद मुझे रात में 11 बजे सोना पड़ता है और सुबह तीन बजे फिर भोजन पकाने के लिए जगना पड़ता है।’
सरकार दे रही एक ही बस की सेवा
तमिलनाडु एक विकसित प्रदेश की श्रेणी में आता है, लेकिन यहां के कुछ इलाकों की हकीकत जानकार आप भी हैरान रह जाएंगे कि आखिर कैसे विकसित प्रदेश है, तो विकसित होने के पीछे का कारण यहां के लोगों का दृढ़निश्चिय है। सत्यमंगलम से गुंदरी के लिए कोयंबटूर डिविजन से संबद्ध तमिलनाडु राज्य परिवहन निगम की केवल एक बस सेवा है। 54 किमी की यह दूरी तीन घंटे में तय होती है, क्योंकि 44 किमी का इलाका घाट रोड है, जो टाइगर रिजर्व से गुजरता है। गुंदरी समेत इस बस के कुल 38 स्टॉप हैं। महालीथोट्टी और कदंबुर के बीच की दूरी 19 किमी है लेकिन दुर्गम रास्ते की वजह से बस ढाई घंटे का वक्त लगाती है। इसके बाद भी यहां के बच्चे पढ़ने के लिए जाते हैं और बच्चों के मां-बाप भी अपने बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा ही तत्र्पर रहते हैं। वैसे बताया जाता है कि बस सेवा से औसतन रोज 8000 रुपये का कलेक्शन होता है। पूर्व पंचायत अध्यक्ष जीवी रामचंद्रन का कहना है, ‘यह राशि दोगुनी हो सकती है अगर राज्य परिवहन निगम अतिरिक्त बस सेवा का संचालन करे।’
जिनके ऊपर जिम्मेदारी, उनकी भी सुने
‘गांव वालों ने उनसे अडिशनल बस सर्विस और समय बदलने की मांग की है। मैंने पहले ही ट्रांसपोर्ट अधिकारियों को स्कूल और कॉलेज के स्टूडेंट्स की सुविधा और समय के मुताबिक बस के संचालन की संभावनाएं तलाशने को कहा है।’ एस प्रभाकरन, कलेक्टर इरोड ‘गांव वालों को आने.जाने में हो रही दिक्कतों के बारे में उन्हें पता है। मैंने ट्रांसपोर्ट अधिकारियों स्टूडेंट्स के स्कूल के समय के मुताबिक बस की टाइमिंग बदलने के लिए खत भेजा है। उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही बस का समय बदल दिया जाएगा।’मुख्य शिक्षा अधिकारी, आर बालामुरली इरोड ‘इरोड जिले के शिक्षा-ट्रांसपोर्ट विभाग के अधिकारियों से बात करके वह गांवों के बच्चों को हो रही मुश्किल के बारे में जांच करेंगे। शिक्षा का अधिकार कानून के उल्लंघन की बात पूरी तरह से गलत है। आरटीई केवल 8वीं क्लास तक लागू होता है। हायर सेकेंडरी स्कूल के बच्चों की मदद के लिए वह इरोड जिले के शिक्षा अधिकारियों से करीब के सरकारी स्कूलों को अपग्रेड करने की संभावना के बारे में जांच के निर्देश दिए जाएंगे।’प्रदीप यादव, राज्य स्कूल शिक्षा सचिवसंबंधित खबरें
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