सब्सक्राइब करें
विश्व कठपुतली दिवस: गुलाबो खूब लड़ी, सिताबो खूब लड़ी, जानिए इनका इतिहास
वैसे तो कठपुतली की कई सारी कहानियां फेमस हैं लेकिन सबसे लोकप्रिय नागौर के अमर सिंह राठौड़ की है।
इस लेख को शेयर करें

अरे देखो फिर लड़ै लागीं गुलाबो-सिताबो। आओ हो...देखो बच्चों शुरू हो गईं दोनों। कठपुतली का ये खेल कई लोगों ने अपने बचपन में देखा होगा। कठपुतियों का ये किरदार इतना फेमस था कि हाल ही में इसपर गुलाबो-सिताबो फिल्म भी बन रही है, जिसमें अमिताभ बच्चन मुख्य रोल में हैं।  

  • बरसों पुराना है कठपुतली का इतिहास

    Indiawave timeline Image

    राजाओं के वीरता की कहानी सुनाती थीं कठपुतलियां

    कठपुतलियों का खेल माना जाता है कि मध्ययुग में भाट समुदाय से शुरू हुआ था। यहां गांव-गांव जाकर वो लोग कठपुतली का खेल दिखाते थे। पहले इसमें ज्यादातर राजाओं की वीरता व पराक्रम की कहानियां होती थीं। भाट समुदाय इसी खेली से अपनी जीविका चलाता था। लोग खेल देखने के बाद उन्हें अपने घर से अनाज या कुछ धन बदले में देते थे। धीरे-धीरे ये कठपुतलियां शाही घरानों तक जा पहुंची। मध्यकालीन राजस्थान में हर शाही दरबार में कठपुतली कलाकार राजाओं की बहादुरी के किस्से बनाकर सबको दिखाते थे।

  • नागौर के राजा अमर सिंह की कहानी थी लोकप्रिय

    Indiawave timeline Image

    अनारकली कठपुतली भी लोकप्रिय

    वैसे तो कठपुतली की कई सारी कहानियां फेमस हैं लेकिन सबसे लोकप्रिय नागौर के अमर सिंह राठौड़ की जो शाहजहां के दरबारी हुआ करते थे। अमर सिंह की कहानी में किस तरह से मुगल शासन में उनके साथ छल-कपट हुआ इसपर थी। इसी में अनाकरली नाम की कठपुतली भी है जिसका नृत्य फेमस था।  


  • राजस्थान में लोकप्रिय रही ये लोककला

    Indiawave timeline Image

    राजस्थान में अभी भी शामिल हैं कठपुतलियों के रंग

    राजस्थान के रंगों में अभी भी इन कठपुतलियों के रंग मिले हैं। ये राज्य बरसों से इस कला को संजोए हैं। राजस्थान के कई हिस्सों में आज भी कठपुतली का खेल होता है और इसकी शुरू हुई थी थार रेगिस्तान से। राजस्थान के गांवों में कोई भी मेला, धार्मिक त्योहार या सामाजिक मेलजोल कठपुतली नाच के बिना अधूरा है। कठपुतली नाच की शुरुआत ढोलक की थाप से होती है और आमतौर पर महिला मंडली की ओर से कथा के माध्यम से सुनायी जाती है। यहां पर कठपुतली नाच न केवल मनोरंजन का स्रोत है, बल्कि इस लोक कला के जरिये नैतिक और सामाजिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार भी होता है तथा सामाजिक मुद्ददों और कुरीतियों को उज़ागर किया जाता है। यहां की कठपुतलियों का बड़ा सा मुंह बनाया जाता है और उनकी आंखें, होंठ सभी बड़े होते हैं। इन्हें लंबा सा लहंगा पहनाया जाता है। 

  • कठपुतली की अलग-अलग शैलियां

    Indiawave timeline Image

    धागा कठपुतली शैली सबसे पुरानी

    इनकी कई शैलियां होती हैं। जैसे धागा कठपुतली शैली काफी पुरानी है। इसमें कठपुलती को अनेक जोड़ युक्‍त अंग तथा धागों से चलाया जाता है। ये राजस्‍थान, उड़ीसा, कर्नाटक और तमिलनाडु में बहुत लोकप्रिय है। दस्ताना शैली को भुजा, कर या हथेली पुतली भी कहा जाता है । इन पुतलियों का सर मेशे (कुट्टी), कपड़े या लकड़ी का बना होता है व गर्दन के नीचे से दोनों हाथ बाहर निकले होते हैं। बाकी शरीर के नाम पर केवल एक लहराता घाघरा होता है। इस शैली में अंगूठे और दो अंगुलियों की मदद से कठपुतलियां चलती हैं। ये उत्‍तर प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल और केरल में लोकप्रिय है।

  • अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग नाम

    Indiawave timeline Image

    लकड़ी और कपड़े के मदद से बनाई जाती हैं

    भारत के कई प्रदेशों में ये अलग-अलग रूपों में देखी जाती हैं। इनमें राजस्थान की कठपुतली सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। यहां धागे से बांधकर कठपुतली नचाई जाती है। लकड़ी और कपड़े की मदद से इन्हें बनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में भी इस कला का खूब प्रचलन रहा है। पहले कठपुतलियों का इस्तेमाल यहीं शुरू हुआ था। शुरू में इनका इस्तेमाल प्राचीनकाल के राजाओं की कहानियां, पौराणिक व्याख्यानों और राजनीतिक व्यंग्यों को प्रस्तुत करने के लिए किया जाता था। धीरे-धीरे इस कला का प्रसार दक्षिण भारत के साथ ही देश के अन्य भागों में भी हुआ। वहीं पश्चिम बंगाल का ‘पतुल नाच’ डंडे की मदद से नचाई जाने वाली कठपुतली का नाच है। एक बड़ी-सी कठपुतली नचाने वाले की कमर से बंधे खंभे से बांधी जाती है और वह पर्दे के पीछे रहकर डंडों की सहायता से उसे नचाता है। उड़ीसा का साखी कुंदेई, आसाम का पुतला नाच, महाराष्ट्र का मालासूत्री बहुली और कर्नाटक की गोम्बेयेट्टा धागे से नचाई जाने वाली कठपुतलियों के ही रूप है।


  • कैसे बनाई जाती हैं कठपुतलियां

    Indiawave timeline Image

    अलग-अलग तरीकों से बनाई जाती हैं

    कठपुतलियां कई तरीकों से बनाई जाती हैं। अलग-अलग जगहों पर इसे बनाने का तरीका भी अलग है। कई जगहों पर इन्हें जानवरों की खाल से भी बनाया जाता है। ज्यादातर जगहों पर इन्हें धागों, लकड़ी व कपड़ों से बनाया जाता है। कठपुतली का चेहरा व गर्दन एक ही लकड़ी से बनाया जाता है। इसमें रूई व कपड़े से बने हाथों व धड़ को जोड़ दिया जाता है। इनके कपड़ों को चटक रंगों का रखा जाता  है और गोटे से सजाया जाता है।इनके चेहरे भी खूबसूरत रंगों से संजाये जाते हैं। इन्हें सिर व सीने पर एक ही डोर से बांधा जाता है। स्त्री कठपुतलियों के पैर नहीं होते। कलाकार के हाथों में जितनी सफाई होती है कठपुतलियां उतनी ही खूबसूरत बनती हैं। 

सब्सक्राइब न्यूज़लेटर