हर किसी की कलाई पर सजने वाली अलग-अलग ब्रांड की घड़ियां अब सिर्फ समय ही नहीं बल्कि फैशन की भी मानक हैं। लेकिन एक समय था जब वक्त देखने के लिए इनको बड़े ही टेक्निक से बनाया जाता था। इन घड़ियों का इतिहास बहुत पुराना है पहले लोग सूर्य की अलग-अलग अवस्थाएं देखकर सुबह, दोपहर और शाम का अनुमान लगाते थे। यही नहीं धूप के कारण पड़ने वाली किसी पेड़ या कोई स्थिर वस्तु की छाया से भी समय का अंदाजा लगाया जाता था। रात के समय का ज्ञान नक्षत्रों से किया जाता था। उसके बाद धीरे-धीरे पानी व बालू से घड़ी बनाई जाने लगी। आइये डालते हैं एक नजर इनके इतिहास पर...
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सूर्य घड़ी
सूर्य की किरणें बताती थी समय
सूर्य घड़ी को समय की गणना करने वाला पहला अविष्कार माना जाता है। सूर्य घड़ी देखकर समय का लगभग अनुमान लग जाता था लेकिन यह घड़ी उस समय काम नहीं कर पाती थी जब बादल होते थे। इसका इस्तेमाल प्राचीन मिस्र की सभ्यता में किया जाता था। ये भी कहा जाता है कि सूर्य घड़ी वैज्ञानिक रूप से समय की गणना करने वाला पहला आविष्कार है। इसमें कुछ कमियां थी जिसके लिए भी फिर दूसरा साधन ढूढ़ने की जरूरत महसूस हुई। लेकिन आज भी सूर्य घड़ी देखकर समय का मोटा अंदाजा लगाया जा सकता है।
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रेत घड़ी
रेत के जरिए पता चलता था समय
इस घड़ी का आविष्कार कब हुआ इसके बारे में कोई सुबूत नहीं है। लेकिन कहा जाता है कि इस रेत घड़ी का आविष्कार अरब में हुआ है। मध्यकाल के दौरान रेत से कांच बनाने की कला विकसित हुई। कांच को खास बनावट में ढालकर उसके भीतर रेत भरी जाती थी। इसके एक खाने से दूसरे खाने में रेत जाती है और उसी के मुताबिक समय का अंदाजा लगाया जाता था।
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जल घड़ी
16वीं शताब्दी में था जल घड़ी का चलन
सबसे पहली जल घड़ी 16वीं शताब्दी में बनाई गई थी। इसमें पानी की टपकती बूंदों से समय का अंदाजा लगाया जाता था। यूनान में भी लोग पानी से चलने वाली अलार्म घड़ियों का इस्तेमाल करते थे। इसमें पानी के गिरने के समय पर घंटी बज जाती थी। इस घड़ी में भी कई कमियां थी सबसे पहले तो ये की पानी के प्रवाह को स्थिर दर से प्रवाहित होने के लिए पानी में निरंतर दबाव की जरूरत थी।
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घंटाघर
राजाओं ने बनवाए घंटाघर
जल घड़ी के बाद इसी के आधार पर टॉवर बनाये गए लेकिन उनके साथ ये दिक्कत थी कि पानी के प्रवाह को नियंत्रित करना। इसलिए शासकों ने घंटाघर बनवाने शुरू किए। 18वीं शताब्दी में यूरोप में घड़ी के जरिये दिन को घंटों के हिसाब से बांटने का तरीका खोज लिया गया और घंटाघरों के निर्माण शुरू हो गए। आज भी हर शहर में घंटाघर मौजूद हैं वो बात अलग हैं कि अब उनकी हालत पहले जैसी नहीं है। उस समय चर्च में भी घड़ियां लगाई गईं। इनकी आवाज से ही पूरे शहर के लोगों को वक्त का पता चलता था। लखनऊ, हैदराबाद कई शहरों के घंटाघर आज भी समय बता रहे हैं।
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पॉकेट वॉच
अमीरों का शौक हुआ करती थी
घंटाघर के समय में ही पॉकेट घड़ियां भी आ चुकी थी लेकिन वो सिर्फ अमीरों का शौक थीं। गरीब आदमियों के लिए ये खरीदना मुमकिन नहीं था। फ्रांस और स्विट्जरलैण्ड के कुछ लोगों ने लकड़ी की घड़ियां बनानी शुरू की और उसके बाद इसका चलन शुरू हो गया। इनका इस्तेमाल अंग्रेज ही ज्यादा करते थे।
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कलाई घड़ी
समय के साथ फैशन का भी रखती है ध्यान
पॉकेट वॉच के बाद कंपनियों ने कलाई घड़ी बनानी शुरू की। घंटाघर व पॉकेट वॉच के बाद यूरोपीय देशों ने कलाई घड़ी बनानी शुरू कर दी। धीरे-धीरे इनका फैशन बढ़ता गया और स्टाइल बदलते गए। आज के समय में ये फैशन में हैं और तमाम तरह के ब्रांड इन्हें बना रहे हैं।
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इलेक्ट्रॉनिक घड़ी
जापान ने बनाई थी पहली घड़ी
कलाई घड़ी के बाद इलेक्ट्रानिक घड़ी का दौर आया और जापान ने पहली इलेक्ट्रानिक घड़ी बना ली। इसमें समय अंकों में दिखता था। धीरे-धीरे तकनीक बदलती गई और नए नए तरह की इलेक्ट्रानिक घड़ियां बनने लगीं।
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स्मार्ट वॉच
सेहत का भी रखेगी ध्यान
अब तो कलाई और इलेक्ट्रानिक घड़ी के बाद स्मार्ट वॉच भी बाजार में आ गई हैं जो समय के साथ साथ आपकी धड़कन, सेहत, मैसेज, कॉल्स व पैदल कदमों तक के बारे में बता देती है।